शादीयाफ्ता इश्‍क की दास्‍तां

'शादीयाफ्ता' शब्‍द सुनते ही सजायाफ्ता शब्‍द दिमाग का दरवाजा खटखटाने लगता है। शादी के बारे में आमराय तो यही है कि यह वो बला है जिसका काटा उफ् तक नहीं करता। शादी के आपनी ही पत्‍नी से इश्‍क की कोई दास्‍तां भी हो सकती है कहने वाला कोई सिरफिरा ही हो सकता है यह एक स्‍थापित सत्‍य सा है। कोई भी यह सुनने वाला झट से कह देगा शादी के बाद दासता तो देखी है पर इश्‍क की दास्‍तां न सुनी न देखी है। शादी के बाद इश्‍क शेष ही कब रहता है अगर कुछ रहता है तो वह इश्‍क कर अवशेष होता है।
 
पर मैं यह बात दावे के साथ पूरे होशोहवास में, दुरूस्‍त दिमागी हालत में, कह रही हूं। कलमकार की शंकर की तरह तीसरी आंख जो होती है। वह दिखने वाली वस्‍तु के अंदर का भी देख लेता है। वर्डसवर्थ इसे "इनवर्ड आई" कहते थे। मेरी तीसरी आंख ने अपने देश के एक बहुचर्चित नेता में प्रेमी शहंशाह शाहजहां की झलक देखी है। बल्कि मेरा तो मानना है वह शाहज‍हां से भी ऊँचे दर्जे का प्रेमी कहा जा सकता है।

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जरा अनुमान लगाऐं कि शाहज‍हां से भी ऊँचे दर्जे का प्रेमी कौन है ?  अगली किश्‍त में जवाब आ ही रहा है।
माननीया श्रीमति आशा श्रीवास्‍तव का यह विशिष्‍ट व्‍यंग आलेख निरंतर रहेगा, सुधी पाठकों से आग्रह है की अपनी मूल्‍यवान टिप्‍पणी अवश्‍य देवें।
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